एक्ट्रेस से पॉलिटिशियन बनीं विजया शांति सोमवार को बीजेपी में शामिल हो गई हैं। उन्होंने पिछले हफ्ते ही कांग्रेस छोड़ी थी। विजया ने गृहमंत्री अमित शाह से मुलाकात के एक दिन बाद ही बीजेपी ज्वाइन की है। 54 साल की विजया शांति साउथ इंडियन सिनेमा इंडस्ट्री की एक बड़ी स्टार हैं। उन्होंने 1997 में बीजेपी के साथ ही अपना पॉलिटिकल करियर शुरू किया था।
इसके बाद वह पार्टी छोड़ कर तेलंगाना राष्ट्र समिति (TRS) में शामिल हो गई थीं। वह 2009 में लोकसभा के लिए चुनी गईं। इसके बाद तेलुगु फिल्म स्टार 2014 में कांग्रेस में शामिल हुईं। इससे ठीक पहले आंध्र प्रदेश का विभाजन हुआ था और तेलंगाना का जन्म हुआ था। विजया शांति ने तेजस्विनी और ईश्वर जैसी हिंदी फिल्मों से बॉलीवुड में भी अपनी पहचान बनाई थी।
भाजपा में उनकी वापसी उस समय हुई है जब पार्टी 2023 के तेलंगाना चुनाव के लिए तैयारी कर रही है। बीजेपी ने बीजेपी ने ग्रेटर हैदराबाद नगर निगम चुनाव में 150 में से 48 सीटें जीती हैं। यह टीआरएस की सीटों से 7 कम और 2016 के नतीजों से 12 गुना है। बीजेपी ने पहली बार इस चुनाव में इतनी सीटें जीती हैं। वहीं कांग्रेस ने बमुश्किल दो सीटें जीतीं।
साथ ही पिछले महीने बीजेपी ने दुब्बका विधानसभा सीट पर उपचुनाव में भी टीआरएस को हराकर जीत हासिल की थी। विजया शांति तमिलनाडु की खुशबू सुंदर के बाद भाजपा में शामिल होने वाली दूसरी हाई-प्रोफाइल कांग्रेस नेता हैं। शुक्रवार को हैदराबाद स्थानीय चुनाव परिणामों के बाद विजया शांति ने कांग्रेस छोड़ दी थी।
विजया शांति के करीबी लोगों के अनुसार, उन्होंने पिछले साल राष्ट्रीय चुनाव के लिए प्रचार करते समय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तुलना आतंकवादी और तानाशाह से की थी। वह कुछ समय पहले से ही कांग्रेस से विमुख हो गई थीं। वह पिछले कुछ महीनों से कांग्रेस के कार्यक्रमों और गतिविधियों में भी सक्रिय नहीं थीं। वह पार्टी में "खुद को दरकिनार" महसूस कर रही थीं और तेलंगाना में कांग्रेस के खराब प्रदर्शन से भी खुश नहीं थीं।
बीजेपी नेता जी विवेक ने रविवार को कहा था कि विजया शांति ने तेलंगाना में बहुत काम किया। लेकिन राज्य के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव ने उन्हें दरकिनार कर दिया था। भाजपा अगली बार तेलंगाना विधानसभा में निश्चित रूप से जीतेगी। विजया शांति राज्य में पार्टी के विकास के लिए सबसे आगे होंगी। विजया शांति को सिर्फ तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में ही नहीं बल्कि तमिलनाडु में भी लोकप्रियता हासिल है। जहां छह महीने से भी कम समय में राज्य के चुनावों के प्रचार में उनका इस्तेमाल होने की संभावना है।
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